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कविता

चौपाई

मुंशी रहमान खान


यही वर्ष तारीख म‍हीना। लालरूप जहाल नवीना।। 1
चार सौ आठ लिए नर नारी। पहुच्‍यो आय शहर परमारी।। 2
प्रथम जहाज यही यहँ आयो। भारतवासी लाय बसायो।। 3
                  दुइ जाति भारत से आए। हिंदू मुसलमान कहलाये।। 4
रही प्रीति दोनहुँ में भारी। जस दूई बंधु एक महतारी।। 5
सब बिधि भूपति कीन्‍ह भलाई।
दुख अरु विपति में भयो सहाई।। 6
हिलमिल कर निशिवासर रहते।
                  नहिं अनभल कोइ किसी का करते।। 7
बाढ़ी अस दोनहुँ में प्रीति। मिल गए दाल भात की रीती।। 8
खान पियन सब साथहिं होवै। नहीं बिघ्‍न कोई कारज होवै।। 9
सब विधि करें सत्य व्‍यवहारा। जस पद होय करें सत्‍कारा।। 10


दोहा

यहि प्रकार से बसत यहं गए बहुत दिन बीति।
करैं कर्म दोउ धर्मयुत कोइ नहिं बांटी प्रीति।। 2

 


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